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Friday, 6 June 2014

चित्र हाइकु कार्यशाला 27 मई 2014

फेसबुक हाइकु समूह पर यह चित्र देखकर हाइकु लिखने के लिए कहा गया।
चित्र देखकर हाइकु लिखने की एक परम्परा है, किसी चित्र देखकर अलग अलग तरह के भाव मन में उठते हैं, ये भाव व्यक्ति की अपनी मनोदशा को भी अभिव्यत करता है..... यह चित्र फेसबुक से ही लिया गया है, जिसने इस चित्र को अपने कैमरे से उतारा है उन  अनाम सज्जन का आभार कि उनका चित्र इतनी हाइकु कविताओं को जन्म दे गया...... बहुत कम समय में 17 हाइकु पोस्ट करके सदस्यों ने अपनी अपरिमित रचनात्मक ऊर्जा का परिचय दिया है ..... सभी को मैं हार्दिक वधाई देता हूँ।



सबसे पहले अश्विनी कुमार विष्णु ने अपना हाइकु पोस्ट किया। चित्र में धूप की परिकल्पना करते हुएरेल की पटरी पर धूप का दौड़ना और फैले हुये तम को दूर करने की अद्भुत कल्पना की है-

दौड़ रही है 
पटरी पर धूप
तम हरने

-अश्विनी कुमार विष्णु
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डा० अंजलि देवधर विश्वस्तर पर अंग्रेजी हाइकु की सुप्रसिद्ध हाइकुकार हैं, हाइकु समूह पर उनकी सहभागिता समूह के लिए बेहद सम्मान का विषय है। चित्र में जिस तरह का शांत वातावरण है वह एक दार्शनिक चिंतन की ओर भी प्रेरित करता है, उनका हाइकु जहाँ खत्म होता है वहीं से चिंतन की शुरुआत होने लगती है-

बुद्ध पूर्णिमा
कहाँ चला जा रहा (मैं)
ढूँढ़ता क्या हूँ

-डा० अंजलि देवधर
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गतिमयता ही सत्य है, चाहे वह रेल की पटरी हो या सूरज का निरंतर आना जाना, प्रकाश खत्री शायद यही कहना चाह रहे हैं-

पटरी चले 
रेल और सूरज
ज़िंदगी ज़िद्दी

-प्रकाश खत्री
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चन्द्रमा की चाँदनी मार्ग प्रशस्त करने का प्रतीक है तो रेल की पटरियाँ हमारे गंतव्य की परिचायक हैं जो हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सहायक है, ज्योतिर्मयी पन्त का हाइकु यही प्रेरणा दे रहा है-

प्रकाश पुञ्ज 
मिले सुगम मार्ग
निश्चित लक्ष्य 
.
-ज्योतिर्मयी पंत

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ध्यान चन्द के हाइकु में चन्द्रमा की किरणों का आँख मिचोली खेलना मानव जीवन में आने वाले दुख सुक की ओर संकेत करता है-

चंद्र किरण 
खेले आंख मिचोली 
चला जीवन

-ध्यान चन्द
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रेखा नायक रानो के हाइकु में साँझ ढलने के शाश्वत सत्य और जीवन यात्रा की निरंतरता की परिकल्पना की गई है, सकारात्मक सोच का यह हाइकु बहुत कुछ समाहित किये हुए है-

ढलती साँझ 
अनवरत यात्रा 
चलते जाना 

-रेखा नायक रानो 
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संजय सूद चित्र में जीवन की लम्बी राहों को पढ़ लेते हैं और निरंतर चलते रहने को ही जीवन का ध्येय मानते हैं-

लम्बी है राहे 
समय अनजाना 
चलता चल 

- संजय सूद
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यहाँ रास्ता सूना है, रात के समय है और चारो ओर नीरवता परन्तु कोई तो हमारा साथ दे रहा है और वह है चन्द्रमा की किरणें फिर भला राही को डर कैसा, निराशा में आशा की रोशनी देता हुआ गुंजन गर्ग अग्रवाल का यह हाइकु जीवन जीने की अतिरिक्त प्रेरणा दे रहा है-

सूनी डगर
चन्द्र किरण साथ
राही निडर

-गुंजन गर्ग अग्रवाल

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मीनाक्षी धनवंतरि रेल की पटरियों को पृथ्वी की माँग के रूप में देखती हैं, झिलमिलाती रोशनी आकाश में चाँदी जैसी छटा बिखेर रही हैं-

धरा की माँग
झिलमिलाता व्योम 
चाँदी बिखरी

-मीनाक्षी धनवंतरि
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रेल की पटरी हमारे लक्ष्य तक पहुँचने का माध्यम है, चन्द्रमा की चाँदनी के साथ प्रिय की नगरी तक पहुँचने की परिकल्पना इस हाइकु में आभा खरे ने की है-

रेल पटरी 
चाँद संग ले चली 
पी की नगरी 

-आभा खरे

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संध्या के घर में दिनकर का अतिथि बनकर रात भर रुकना एक अनोखी कल्पना है, अभिषेक जैन का यह हाइकु यही कहता है-

गुजारे रात
अतिथि दिनकर
संध्या के घर

-अभिषेक जैन
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मानव कहाँ से आता है और कहाँ को जाता है, कोई नहीं जानता... चित्र देखकर यती जी दार्शनिक की तरह चिंतन करने लगते हैं, उन्हें लग रहा है कि वे क्षितिज के पार कहीं चलते चले जा रहे हैं-

लग रहा है 
चला जा रहा हूँ मैं 
क्षितिज पार

-ओमप्रकाश यती
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अँधेरी पटरियों को सूर्य मानो रास्ता दिखा रहा है, डा० सरस्वती माथुर का यह हाइकु देखें-

रोशन रास्ता
पटरी को दिखाती
सूर्य की बत्ती 

-डॉ० सरस्वती माथुर

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विभा श्रीवास्तव पूर्ण अर्पण और कर्म संदेश इस चित्र में देख रही हैं-

पूर्ण अर्पण
पथ पाँव अथक
कर्म सन्देश

-विभा श्रीवास्तव
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लोक छूटने की कमी कहीं न कहीं उनके मन में खटकती रहती है जो लोक से जुड़े हुए हैं, सुनीतअ अग्रवाल चित्र में चाँद देखकर पुरानी स्मृतियों में पहुँच जाती हैं और खेतों के बीच चाँद छूटने की महानगरीय त्रासदी हाइकु में उभर कर आ जाती है-

गाँव जो छूटा
खेतों के बीच कहीं 
चाँद भी छूटा 

--सुनीता अग्रवाल (नेह)

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महेन्द्र वर्मा गुमसुम पटरियों के द्वारा चाँद को निहारने की कल्पना करते हैं-

छटा बिखरी 
गुमसुम पटरी 
चाँद निहारे

-महेंद्र वर्मा "धीर"
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अरुण सिंह रुहेला का हाइकु गज़ब की परिकल्पना करते हैं, उन्हें लगता है कि चाँद छोटा बच्चा है जो अपने पिता के साथ घूम रहा था, उसके पिता रेल में बैठकर चले गये.... वह बेचारा अकेला रह गया एकदम अनाथ

छूटी जो रेल
पिता का छूटा साथ
चाँद अनाथ

-अरुण सिंह रुहेला
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रामेश गौरी राघवन अंग्रेजी के हाइकुकार हैं, रामेश गौरी राघवन अपने हाइकु में चन्द्रमा के पश्चिम की ओर जाने पर प्रतिस्पर्धा की परिकल्पना करते हैं-


पश्चिमी ओर...
क्या चन्द्र से होगी
प्रतिस्पर्धा ?


-रामेश गौरी राघवन
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(समय सीमा के बाद प्राप्त एक अनमोल हाइकु)-

चाँद ये कहे
राह है मुझ तक 
मन तो बना

-अरविन्द चौहान

 बिल्कुल नई दृष्टि से चित्र को अरविन्द जी ने देखा है, संसार में कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है मन में हौसला होना चाहिए.....दुष्यन्त के इस शेर की तरह यह हाइकु भी अदम्य प्रेरणा देने वाला है- "कौन कहता है कि आकाश में सूराख नहीं हो सकता" .......

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-डा० जगदीश व्योम
सम्पादक
हाइकु दर्पण